अपनी धुन

मेरा मन कहता है

Saturday, April 4, 2009

महाभारत के कन्फ्यूजन

आज मै कुछ बाते पूछना चाहता हूँ।
ये है महाभारत के सम्बन्ध में मै उतना ही जनता हूँ , जितना बी.आर.चोपडा या रामानंद सागर ने अपने धारावाहिकों में दिखाया है। व्यास जी की महाभारत को पढ़ना न तो मेरे बस में है। और न ही उसकी भाषा मेरी समझ में आने वाली । लेकिन चोपडा और सागर जी ने जो दिखाया है , मै उस पर बात करना चाहता हूँ ।
कर्ण और अर्जुन में बेहतर योद्धा हमेशा कर्ण को कहा जाता रहा , जबकि दिखाया या ये कह लीजिये मैंने हर युद्ध में कर्ण को अर्जुन से हारते हुए ही देखा। चाहे वो विराटनगर का युद्ध रहा हो या कुरुक्षेत्र का संग्राम , कर्ण विराटनगर में भी अर्जुन से हारा था , और कुरुक्षेत्र में भी अर्जुन के हाथो परास्त हुआ और मारा गया ।
अब आप ये कह सकते है कि, अर्जुन ने उसे धर्मयुद्ध में नही मारा मै इस बात से सहमत हूँ। लेकिन कर्ण ने उस वक्त कौन सा धर्म किया था जब उसने अभिमन्यु को अन्य कौरवो के साथ मिलकर मारा ।
या ये भी कहा जा सकता है कि इन्द्र ने उसके कवच कुंडल मांग कर उसके साथ छल किया , ये बात मानने में मुझे कोई गुरेज़ नही है। परन्तु इन कवच और कुंडल के बिना उसे हराया नही जा सकता था । ये बात मानने में मुझे आपत्ति है। क्योकि विराटनगर के युद्ध में जब दोनों योद्धा आमने-सामने थे , तो कर्ण के पास ये दोनों ही चीजे थी तब भी कर्ण क्यो हारा ।
कर्ण हर बार अर्जुन से हर बार हारने के बाद भी उससे बेहतर योद्धा क्यो था। कोई मुझे बताएगा ?


12 Comments:

At April 5, 2009 at 10:29 AM , Blogger डा ’मणि said...

सादर अभिवादन
आपकी रचना के लिये बधाई
ब्लोग्स के नये साथियों मे आपका बहुत स्वागत है

चलिये चार पंक्तियों से अपना परिचय करा रहा हू
चले हैं इस तिमिर को हम , करारी मात देने को
जहां बारिश नही होती , वहां बरसात देने को
हमे पूरी तरह अपना , उठाकर हाथ बतलाओ
यहां पर कौन राजी है , हमारा साथ देने को

सादर
डा उदय ’मणि’ कौशिक
http://mainsamayhun.blogspot.com

 
At April 5, 2009 at 11:22 AM , Blogger संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

 
At April 5, 2009 at 11:43 AM , Blogger dr amit jain said...

आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .आपका लेखन सदैव गतिमान रहे ...........मेरी हार्दिक शुभकामनाएं......12:06 AM 4/6/2009amitjain</a

 
At April 5, 2009 at 7:35 PM , Blogger रचना गौड़ ’भारती’ said...

swaagata hai

 
At April 5, 2009 at 10:45 PM , Blogger Vikram Thakur said...

This comment has been removed by the author.

 
At April 5, 2009 at 10:49 PM , Blogger दिगम्बर नासवा said...

आपके जवाब तो सही हैं...........
महाभारत पढना पड़ेगा इस के लिए

 
At April 6, 2009 at 9:10 AM , Blogger अनिल कान्त said...

अपनी बातें राखी आपने ...पढ़कर अच्छा लगा

 
At April 7, 2009 at 4:03 AM , Blogger Digvijay Singh Rathor Azamgarh said...

har jit se behater hone ka andaja nahi lagaya ja sakta

 
At May 15, 2009 at 5:26 AM , Blogger Urmi said...

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत अच्छा लगा आपका ये पोस्ट! लिखते रहिये!

 
At May 22, 2009 at 3:35 AM , Blogger Manisha said...

Karan isliye arjun se jyada honhaar tha kyonki uske paas arjun jaise guru nahi the phir bhi usne har Parsithi ko apnana sikha.arjun ke paas uske guru ki dhaal thi. jab karan se inder ne uske kundal aur kavach manga to usne bina kuch kahe de diya kyonki wo ek shatriye ke saath-2 daani bhi tha. jis tarah se pandav bina kuch yaad rakh kar sab ko mar rahe the usi tarah karan ne bhi yahi kiya.karan mahabharat mein hara nahi tha use arjun ne gadari ke saath mara tha. agar koi nihathe par war kare to use kya khenge. abhi bhi aapko samjh nahi aaya to phir aapko kabhi samjh nahi aayega ki karan kyon haar kar bhi jeet gya.................that's true.

 
At May 23, 2009 at 4:09 AM , Blogger mauryarohit said...

mahabharat ke sambandh me jitana jante ho utna kaffi hai. jyada dimaag lagaoge utni hi uljhan me padoge.

 
At February 3, 2015 at 12:08 AM , Blogger Vikram Thakur said...

Ji unke pas guru ke roop me Parshuram the.
Aur Viratnagr mein Arjun ke Sath Srikrishn nahi the

 

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