मुम्बई की शाम
दिन भर सूरज की गर्मी में उमस से तड़पते इस शहर में शाम के वक़्त मरीन ड्राइव पर बैठा हुआ हूँ। दिन भर शहर के सीने पर चढ़ा रहने वाला समन्दर अब धीरे-धीरे इसके पाँव धोने लगा है। मानो कोई माँ दिन भर अपने बच्चे को सजा देने के बाद अब उसे मनाने की कोशिश कर रही है।
सुना था कि मुम्बई कभी नही रुकता चाहे वो कसाब हमला हो या अंधाधुंध बारिश ! सच है ये शहर नही रुकता और न ही रुकता है इस शहर का अपने समन्दर पर हमला जो दिन चढ़ने के साथ इसमें ज़हर भरने लगता है। चढ़ते सूरज के साथ के साथ इसका हमला तेज होने लगता है तो समंदर का गुस्सा भी इस शहर के लिए बढ़ने लगता है, तभी तो दिन भर इस शहर के सीने पर अपना सर पटक-पटक कर इसे जगाने की की कोशिश करता है। दिन ढलने पर शहर के साथ साथ मानो ये भी थक जाता है, और शांत हो जाता है।
हर सुबह के साथ शुरू हुई इन दोनों की जंग शाम होते-२ रुक जाती है। मानो युद्ध विराम का ऐलान दोनों ने साथ साथ ही कर दिया हो। न जाने कब तक इनके बीच ये जंग चलती रहेगी? कौन जीतेगा ? मै ये भी नहीं जानता फ़िलहाल तो मरीन ड्राइव पर बैठ कर चाय की चुस्कियों के साथ इस युद्ध विराम के मजे ले रहा हूँ।
जय महराष्ट्र फुर्सत रही तो फिर मुलाकात जल्दी ही होगी।
Labels: मरीन ड्राइव
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