अपनी धुन

मेरा मन कहता है

Friday, July 3, 2009

तो जाए हम कहा

आज एक सपना देखा । एक बिल्ली जो कच्चे घरो में पाई जाती है , मैंने देखा की वो एक कोने में बैठी रो रही है क्या जानवर भी रोते है, क्या उनके भी भावनाए होती है। यही जानने के लिए मई उससे बातें करने लगा
मैंने उससे - "पूछा तू रो क्यो रही है। "
तो उस्सने रोते हुए ही जवाब दिया -" चुप कर बेवकूफ इंसान तू तो ऐसे पूछ रहा है , जैसे कुछ जनता ही नही।"
इस पर मैंने कहा - "अरे अब तू बताएगी तभी तो जानूंगा ।"
बिल्ली - "आज शाम को एक कुत्ता मेरे बच्चे को उठा ले गया और , और तू पूछता है की मै रो क्यो रही हूँ।"
मै - "तो तू उस बच्चे की माँ है।"
इस पर बिल्ली ने भड़क कर जवाब दिया - "हाँ , मै उस अभागे बच्चे की माँ हूँ।"
मै - "अरे ! तू तो ऐसे भड़क रही है जैसे मैंने ही तेरे बच्चे को मारा है।"
बिल्ली -"हां मेरे बच्चे के मरने का कारन तुम लोग ही हो।"
मै - "भला वो कैसे।"
बिल्ली-"वो ऐसे की जो तुम्हारे कच्चे घर होते थे, उसमे बनाये गए कोठो* पर हम रह लेते थे यूं जमीन पर नही आते थे की , हम कुत्तो का शिकार बन जाए ।लेकिन अब तुम लोगो ने कच्चे घरो को गिराकर पक्के माकन खड़े कर दिए ।अब हम जाए तो जाए कहा "
इस पर मैंने कहा की,-" तो तुम्हारे लिए हम जिंदगी भर कच्चे घरो में रहे ।और हर साल हम बरसात के दौरान कच्चे घरो की मरम्मत कराते रहे। "
बिल्ली - "जब तुम भी यही सोच रहे हो तो , इंसान किस बात के ,अपने बारे में तो हम भी सोच लेते है।"
उसका ये कहना था की मेरी नीद खुल गई । और मै रात भर यही सोचता रहा की क्या वाकई मै , जानवरों की तरह सोचता हूँ। मेरी सोच वहा जा कर थमी जब मै ये सोचने लगा की कही ऐसा दिन ना आ जाए , जब हम अपनर पोतो से ये कहे की,- "बच्चो हमारे जम्मन में बिल्लिया हुआ करती थी जो हमारे हिस्से का दूध चोरी से पी जाती थी।" और जब वो पूछेंगे की वो कहा गई तो हमारे पास क्या कोई जवाब होगा।

*कोठा - खपरे के मकानों में खपरैल और फर्श के बीच छत जैसी सरंचना , जैसी आजकल के पक्के घरो में दुछत्ती होती है , जिसे स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल किया जाता था.

5 Comments:

At July 3, 2009 at 7:23 AM , Blogger ओम आर्य said...

sundar prastuti ..............wichaaro ko achchha shabda diya hai.......too good

 
At July 3, 2009 at 9:03 AM , Blogger संगीता पुरी said...

मनुष्‍य की जीवन शैली बदलने से न जाने कितने प्राणियों को नुकसान हो रहा है .. इससे प्रकृति में असंतुलन भी होगा .. सपने के रूप में आयी आपकी सोंच काबिले तारीफ है .. बहुत सुंदर पोस्‍ट !!

 
At July 3, 2009 at 10:57 AM , Blogger डॉ. मनोज मिश्र said...

संवाद के जरिये ध्यानाकर्षित करती पोस्ट .

 
At July 10, 2009 at 1:44 AM , Blogger jaagte raho said...

BADHIYA LIKHA HAI DOST.YE SIRF TUM HI LIKH SAKTE THE.HAMESA KI TARAH ACCHE VICHAR.TOO GOOD

 
At July 23, 2009 at 11:52 PM , Blogger सुशीला पुरी said...

bahut sundar......itni gahri samvedna...lajawab

 

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