अपनी धुन

मेरा मन कहता है

Wednesday, August 5, 2015

क्या है सेकुलरिज्म ?

सच में क्या है ये सेकुलरिज्म, जी मुझे तो ना समझ में आता । सेकुलरिज्म नाम की चिड़िया है भी या नहीं। कम से कम भारत में तो नहीं ही है। भारत में सेकुलरिज्म हाथी के दिखाने वाले दाँत हैं बस, और कुछ नहीं। इस देश में सेकुलरिज्म के नाम पर तुष्टिकरण होता है, बस और कुछ नहीं।
याद आता है कुछ सालों पहले हिमेश रेशमिया का एक गाना आया था। जिसके बोल थे -:
तेरी यादों नें तन्हा न छोड़ा कहीं,
मैं तन्हाइयों में भी तनहा नहीं
या अली अली अली...
जिसका इस कदर विरोध हुआ की हिमेश को गाने के बोल बदलने पड़ गए और अली शब्द की जगह दिल्लगी  शब्द का इस्तेमाल किया गया। मसला गाने के वीडियो में अभिनेत्री के छोटे कपड़ो को लेकर था । तथाकथित सेक्युलरिस्ट खड़े हो गए सेकुलरिज्म का झंडा लेकर - जी ये मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है। अभिनेत्री ने छोटे कपड़े पहने हैं। लिहाज़ा अली शब्द का उपयोग इस्लाम और उसकी आस्था के खिलाफ है।
दूसरी तरफ हिन्दू धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ करती पूरी फ़िल्म आ जाती है। तो किसी हाथों में सेकुलरिज्म का झंडा नही दीखता। उलटे इसके विरोध में आने वाले लोगों को धर्मांध होने का मेडल दे देतें हैं।

हम हमेशा गुजरात दंगो की बात करते हैं, जो हुआ गलत था ये मानने में कोई गुरेज नही है मुझे। लेकिन यही सेक्युलर लोग मऊ में हुए दंगों की बात क्यों नहीं करते।
एक आदमी ने कहा याकूब मुस्लिम है इसलिए उसे फांसी दी जा रही। चल पड़े सारे सेक्युलर अपने आपको सबसे बड़ा सेक्युलर साबित करने। उस बयान के पहले तक सारे सेक्युलर कहाँ सोये थे। एक आदमी बोला, तो बाकियों को लगा की कहीं ये बाज़ी न मार जाये। और सेकुलरिज्म की ऐसी आंधी चली की याकूब की फाँसी नें आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. ऐ.पी.जे. अब्दुल कलाम की आखिरी यात्रा का तेज कम पड़ गया।
सभी सेक्युलरिस्ट को एक आतंकवादी की फाँसी का दुःख था। किसी भी सेक्युलरिस्ट को एक राष्ट्र निर्माता के लिए रोते हुए नही देखा मैनें।
मेरे इस देश में एक बड़ा संकट ये उत्पन्न हो गया है। कि कोई सरकार के काम को चेक करना चाहता है तो उसे राष्ट्रदोही बताया जाने लगता है, और गालियां सुनने लगता है। और अगर कोई सरकार के अच्छे कामों का जिक्र करता है, तो उसे भक्त की उपाधि दे दी जाती है।
कोई भी स्वस्थ वार्तालाप के लिए तैयार नही दीखता।
तुम देशद्रोही हो---- तुम भक्त हो।
हे ईश्वर अगर तुम कहीँ हों और अगर पुनर्जन्म का कोई अस्तित्व है तो मुझे दोबारा भारत का नागरिक मत बनाना। नहीं बनना मुझे भारत का सेक्युलरिस्ट, इससे अच्छा मुझे इजराइल में पैदा करना कम से कम क्लियर रहेगा की मैं यहूदी हूँ। ये सेकुलरिज्म का कन्फ्यूज़न तो नही रहेगा।
एक बात और
याकूब की फाँसी में मुझे सिर्फ एक बात नहीं समझ आई। दोषी पाया सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका ख़ारिज की राष्ट्रपति ने। दोबारा सुनवाई करके सुप्रीम कोर्ट ने सजा बरकरार रखी। इन सब के बीच में ये सेक्युलर लोग मोदी को ले आये ये कैसे हो गया। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के मामले में मोदी कहाँ से आ गए।
अब यहीं रुकना ठीक होगा वरना मैं भी भक्त बता दिया जाऊंगा।

अभी इस जनम के लिए तो जय हिन्द