अपनी धुन

मेरा मन कहता है

Tuesday, April 28, 2009

मै अपने पिता से नफरत करता हूँ लेकिन

आज मै अपने पिता के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। वास्तविकता में मै कभी उनसे नफरत किया करता था। क्योकि वो बहुत ज्यादा प्रतिभा रखने वाले व्यक्ति व्यक्ति है , लेकिन फिर भी वे असफल है , मुझे ये कहने में कोई संकोच नही है की , मैंने उनसे ज्यादा प्रतिभाशाली और असफल इन्सान अपनी अभी तक की जिन्दगी में नही देखा , इस्लिय्ये मै उनसे नफरत करता हूँ ,क्योकि उन्होंने अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल नही किया। ईश्वर की दी हुयी प्रतिभा का सही उपयोग न करने वाले इन्सान से कोई नफरत के अलावा और कर भी क्या सकता है ।

लेकिन मै अपने पिता से प्यार करता हूँ , उनकी बातो और तर्कों का मै कायल रहा हूँ । अभी कुछ दिनों पहले की बात है जब मै और मेरे पापा आपस में बहस करने बैठे तो , अचानक ही उन्होंने ने कहा की किसी भी इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन कौन होता है ? मैंने कहा - "मै नही जनता आप ही बताइए।" इस पर उन्होंने कहा -"उसका अपना बेटा ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन होता है।" ये बात सुनते ही ,मेरे दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया, मेरी कुछ समझ में ही नही आया कि, ये क्या बात हुयी कि एक पिता का सबसे बड़ा दुश्मन उसका बेटा कैसे हो सकता है। काफी देर तक दिमाग चलने के बाद भी मुझे ऐसी बात का कोई ठोस कारण समझ में नही आया । तो मैंने उनसे ही पूछ लिया -"कैसे "। मुझे पता था कि मेरे इस सवाल का जवाब भी मेरे पापा मुझे देंगे , क्योकि उनके पास मेरे हर सवाल का जवाब होता है ।

आप जानते है उन्होंने मेरे सवाल का क्या जवाब दिया , चलिए मै बताता हूँ। उन्होंने कहा -"जब तुम दो महीने के थे , तब मैंने जब अपनी पत्नीयानि कि तुम्हारी माँ से एक गिलास पानी पीने के लिए माँगा उसी वक्त तुमने मैला कर दिया , पहले तुम्हारा मैला साफ किया गया उसके बाद मुझे पानी पीने के लिए मिला मैंने सोचा कि , ये देखो मेरी प्यास से ज्यादा इसके मैले की अहमियत हो गई है , और यह हर इंसान के साथ होता है, इसलिए एक इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन उसका बेटा होता है , बेटे का मैला साफ किया जा रहा है और बाप को पानी नही मिल रहा है।"

अब इसमे कम से कम मुझे तो कुछ ग़लत नही लगा । यही कारण है की, आई लव माय फादर क्योकि उनके पास मेरे हर सवाल का जवाब रहता है। इसीलिए मै पूरे गर्व से कहता हूँ। मेरे पिता चाहे जैसे है लेकिन मेरी नज़र में वे दुनिया के सबसे अच्छे पिता है।

Monday, April 20, 2009

दोहरा के बहाने

आज मैंने अपने शहर के सबसे व्यस्त चौराहों में से एक से गुज़र रहा था । मेरी नज़र एक चोटी मगर आसानी से दिखाई दे सकने वाली एक दुकान पर पड़ी जिस पर लिखा था, " जौनपुर का प्रसिद्ध विष्णु दोहरा "
जौनपुर जिले के कमोबेश हर दोहरे का ब्रांड नाम किसी न किसी हिंदू देवता के नाम पर ही है , जैसे शंकर दोहरा , बजरंग दोहरा इत्यादि । दोहरे का प्रयोग सामान्यतः नशे के लिए ही किया जाता है। नशा कोई भी हो वह अच्छा नही होता , वह शरीर को नुकसान ही पहुचता है ।
ईश्वर के नाम पर लोगो की जिन्दगी से खेलने वाले लोगो पर धर्म के ठेकेदारों की नज़र क्यो नही पड़ती। जो चीस इंसानों को खा रही है , ये उन्हें क्यो नही रोकते इनकी नज़र हर बार महिलाओ के कपड़ो पर ही क्यो पड़ती है । क्यो हर बार ये संस्कृति के नाम पर प्रेमी युगलों पर चढ़ दौड़ते है।
मै धर्म के इन ठेकेदारों से सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा की संस्कृति के नाम पर लोगो को फिजूल में परेशां करना बंद करो । अगर किसी पर पाबन्दी लगनी है तो , देवताओ के नाम पर नशे का कारोबार करने वालो को रोको क्योकि ये इंसान को ख़त्म कर रही है ।
और संस्कृति इंसानों से बनती है , जब इंसान ही नही रहेंगे तब किस संस्कृति की रक्षा करोगे?

Monday, April 6, 2009

चुनावी मौसम

आज कल सभी को चुनावमे होते हुए देख रहा हूँ। तो सोचा की क्यो न मै भी आज चुनाव पर ही कुछ लिखू , ज्यादा तो समझ में नही आया की क्या लिखू , क्योकि मुझे ये समझ में नही आ रहा है की इस चुनाव में कौन किसके साथ है। मै बहुत अच्छी कविताये तो नही लिखता लेकिन इन हालातो में तो मुझे भी एक टूटी-फूटी कविता सूझ ही गई है।

लोकतंत्र के चुनावी मैदान में,
पार्टिया कर रही खेल ,
इंजन का कुछ पता नही ,
फ़िर भी दौडे गठबंधन रेल ,
सपा ,लोजपा, राजद का ,
समझ न पाए कोई खेल ,
लक्ष्य बनाये बी.जे.पी.को ,
दीवारे यु.पी.ऐ.की ठेल ,
बसपा का अंदाज़ निराला ,
वामपंथ से कर गई मेल,
किसके साथ में जाता ,
इसे समझाने में,
भेजे का निकला है तेल।
मैंने तो जो समझा वो लिख दिया ,आप भी लिखिए । मुझे तो इन पार्टियों का खेल नही समझ में आता अगर आप को समझ में आए ,तो मुझे भी समझा दीजिये । क्या आप मुझे समझायेंगे .

Saturday, April 4, 2009

महाभारत के कन्फ्यूजन

आज मै कुछ बाते पूछना चाहता हूँ।
ये है महाभारत के सम्बन्ध में मै उतना ही जनता हूँ , जितना बी.आर.चोपडा या रामानंद सागर ने अपने धारावाहिकों में दिखाया है। व्यास जी की महाभारत को पढ़ना न तो मेरे बस में है। और न ही उसकी भाषा मेरी समझ में आने वाली । लेकिन चोपडा और सागर जी ने जो दिखाया है , मै उस पर बात करना चाहता हूँ ।
कर्ण और अर्जुन में बेहतर योद्धा हमेशा कर्ण को कहा जाता रहा , जबकि दिखाया या ये कह लीजिये मैंने हर युद्ध में कर्ण को अर्जुन से हारते हुए ही देखा। चाहे वो विराटनगर का युद्ध रहा हो या कुरुक्षेत्र का संग्राम , कर्ण विराटनगर में भी अर्जुन से हारा था , और कुरुक्षेत्र में भी अर्जुन के हाथो परास्त हुआ और मारा गया ।
अब आप ये कह सकते है कि, अर्जुन ने उसे धर्मयुद्ध में नही मारा मै इस बात से सहमत हूँ। लेकिन कर्ण ने उस वक्त कौन सा धर्म किया था जब उसने अभिमन्यु को अन्य कौरवो के साथ मिलकर मारा ।
या ये भी कहा जा सकता है कि इन्द्र ने उसके कवच कुंडल मांग कर उसके साथ छल किया , ये बात मानने में मुझे कोई गुरेज़ नही है। परन्तु इन कवच और कुंडल के बिना उसे हराया नही जा सकता था । ये बात मानने में मुझे आपत्ति है। क्योकि विराटनगर के युद्ध में जब दोनों योद्धा आमने-सामने थे , तो कर्ण के पास ये दोनों ही चीजे थी तब भी कर्ण क्यो हारा ।
कर्ण हर बार अर्जुन से हर बार हारने के बाद भी उससे बेहतर योद्धा क्यो था। कोई मुझे बताएगा ?