अपनी धुन

मेरा मन कहता है

Friday, September 18, 2009

ख़बर है जी

हाँ ,तो आज कल कुछ अजीब सी ख़बरे आ रही। ख़बर है कि काशी हिंदू विश्वविधालय ने रैंगिग के आरोपी छात्रों को उनके वकील कि इस दलील पर छोड़ दिया कि, आरोपित छात्र सभ्यघरो के है। और जेल में रहने से उनकी मनस्थित पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। खैर उन वकील साहब का काम ही यही है कि, गलत को सही और सही को गलत साबित करना। लेकिन बी.एच.यू.के पदाधिकारियों को तो सही बात का भान होना चाहिए। जिसने कानून तोड़ने का काम सिर्फ़ अपने मनोरंजन के लिए किया है। वो किस आधार पर सभ्य है। क्या बी.एच.यू.प्रशासन समझायेगा ? मै ये नही कह रहा कि, उन लड़कों को कोई ऐसी सजा दे दो कीउनका कैरियर ख़राब हो जाए , पिछले दिनों ऐसे ही मामले में इलाहबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति ने रैंगिग के दोषी एक छात्र को अंग्रेजी साहित्य की एक किताब ट्रांसलेट करने की सज़ा दी। लेकिन इस यूनिवर्सिटी ने तो एकदम से छोड़ दिया। ये ग़लत है, सिर्फ़ शौक के लिए कानून तोड़ने वाले को सज़ा तो मिलनी ही चाहिए जैसे इलाहाबादी छात्र को मिली वैसी ही सही।
और दूसरी ख़बर है कि, प्रो.मटुकनाथ भी अपना ब्लॉग लिखेंगे अब वो क्या लिखेंगे ये तो उनके लिखने के बाद ही पता चलेगा शायद कोई नया प्रेम ग्रन्थ , या कुछ ऐसा -अपनी छात्र से इश्क कैसे करे,या फिर -मेरा पहला-पहला प्यार , या मटुक और जुली -ऐ लव स्टोरी , जो भी हो जब से उन्हें दुनिया ने पूछना छोड़ दिया है,वो ख़ुद को खबरों में लाने के लिए कुछ न कुछ करते ही रहते है,ओःले लोक सभा चुनाव और अब ब्लॉग , लोक सभा चुनाव में तो वो असफल रहे । अब ब्लॉग लेखन में वो कितने सफल होंगे ये तो भविष्य के गर्त में है।
चलिए अब आप इन खबरों पर मंथन करिए या इनका लुत्फ़ उठाइए मै तो अपनी बात कह चुका, राम-राम जी

Tuesday, September 8, 2009

ह-एकम न-एकम



नाम देखकर आपने ये जरूर सोचा होगा , 'ह-एकम न-एकम 'क्या बला है मई बताता हूँ , ये 'H-1 N-1 'का हिन्दी रूपांतरण है। मेरे हिसाब से हिन्दी के विद्वत जनो की इस पर क्या राय है ,इससे मै अनभिग्य हूँ , परन्तु उनकी सी पर राय क्या है , ये मै जानना जरूर चाहूँगा ।


'H-1 N-1' अगर आप भूले न हो तो आपको याद ही होगा की ये स्वाइन फ्लू के वायरस का नाम है , जिस पर इतना हल्ला मचा की आम आदमी खौफ से पागल हो उठा , जब तक मीडिया में इसकी खबरे आती रही लोग मास्क पहनते रहे । अब मीडिया हमें नही डरा रहा ,तो हम डर भी नही रहे है। खैर जो भी हो कम से कम ये बला तो सर से हटी।

मुझे ते अब तक समझ में नही आया की ये बीमारिया गोरो से ही क्यो फैलती है। कभी -२ तो लगता है की, इस गोरी नस्ल का नाम ही "रोग उत्पादन केन्द्र " रख देना चाहिए , कैसी-२ बीमारिया ले आते है, बंदरों से ऐड्स ले आए , तो मुर्गो से बर्ड फ्लू , और अब स्वाइन फ्लू , अभी कुछ दिन पहले यू.एस. से रिपोर्ट बी ओ ,बी चलिए और स्वाइन फ्लू के वायरस आपस में मिलाप कर सकते है, अब ये गोरे नयी मुसीबत खड़ी कर रहे है , ये दुनिया को चैन से जीने नही देंगे, पता नही कब सुधरेंगे ।

हाई प्रोटीन मांस बनने के लिए जेनेटिक इंजिनीअरिंग करते है, हाई प्रोटीन तो नही हाई रिस्क मांस जरूर तैयार कर देंगे और जब ये हाई प्रोटीन खाना खाकर मरने लगेंगे तो चिल्लायेंगे की बचाओ देखो हमें ये मार रहा है,पर कोई क्यो सुने हाई प्रोटीन खाने से पहले पुछा था क्या ? न सुनो तो साड़ी दुनिया में घूम -२ बांटना शुरू कर देंगे। पूरी दुनिया में फैलाकर ही मानेंगे। हे भगवन ! ये गोरे कब सुधरेंगे ?कब बंद करेगे दुनिया को परेशां करना ?

ये कब सुधरेंगे ये तो पता नही, पर मै तो चला स्वाइन फ्लू का मंत्र पढ़कर उसकी पूजा करने की कही फ़िर से वापस आकर मुझे ही न दबोच ले ह-एकम न-एकम...........................



Monday, September 7, 2009

कही ये एक और वी.आर.एस. तो नही





जी हाँ , कहीं ये एक और वी.आर.एस.की तैयारी तो नहीं की जा रही है , कि इतने सीनियर और महान खिलाड़ी को एक मौका मिलना चाहिए , ताकि वो सम्मानजनक तरीके से अपनी विदाई ले सके , जिस क्रिकेटर ने एक दिवसीय मैचों में १०,००० से भी ज्यादा रन बनाये हों , उसे एक और मौका मिलना ही चाहिए ,श्री लंका दौरे के साथ चैम्पियंस ट्रोफी के लिए राहुल द्रविड़ का टीम में अचानक सेलेक्ट हो जाना कही चयनकर्ताओं कि इसी सोच का नतीजा तो नही है


सौरव गांगुली के मामले में भी यही किया गया था, पहले अच्छे प्रदर्शन के बावजूद उन्हें बहार का रास्ता दिखाया गया , क्रिकेट प्रेमियों के इस फैसले के प्रति विरोध जताने पर उन्हें टीम में इस शर्त पर लाया गया कि ,वे इस सीरिज के बाद संन्यास ले लेंगे और सौरव ने बाद में ऐसा ही किया।


लेकिन द्रविड़ का मामला थोड़ा अलग है , उनके लिए क्रिकेट प्रेमियों ने कोई प्रदर्शन नही किया , उन्होंने अपने प्रदर्शन के बूते ही टीम में दुबारा जगह बनाई। टीम में जगह गांगुली ने भी अपने प्रदर्शन से ही बनाई थी ,लेकिन उन्हें दर्शकों का जो समर्थन मिला था वो भी कम महत्वपूर्ण नही था उनकी वापसी में, पर द्रविड़ के साथ ऐसा नहीं हैं। जहाँ गांगुली कि वापसी के बाद दर्शकों ने जश्न मनाया था , वाही द्रविड़ को वापस बुलाने पर काफी लोगो ने ये , कहकर रोष व्यक्त किया कि यह फ़ैसला टीम को पीछे ले जाएगा


जबकि द्रविड़ वापसी के वक्त सौरव के उस फार्म से बेहतर फार्म में है। जब सौरव को टीम में लिया गया था


गांगुली और द्रविड़ की वापसी में एक अन्तर है , यदि द्रविड़ अच्छा प्रदर्शन करते है तो वे आगे खेल सकेंगे क्योंकि हाल-फिलहाल टीम इंडिया कि यूथ ब्रिगेड में कोई भी ऐसा प्रदर्शन नहीं कर रहा है , कि ये कहा जाय कि टीम को उनकी ज़रूरत नहीं है जबकि गांगुली के मामले में ऐसा नहीं था , गंभीर के रूप में इंडिया को दूसरा सौरव तो मिल गया, लेकिन द्रविड़ के विकल्प के रूप में अजमा गए खिलाड़ी - रैना, रोहित शर्मा यहाँ तक कि कप्तान धोनी भी . पर द्रविड़ के स्थान को नहीं भर पाए,द्रविड़ के टीम में वापस आने की एक वजह इन खिलाड़ियों का . पर बुरी तरह असफल रहना भी है


असल मुद्दा है कि द्रविड़ के लिए टीम में जगह कौन खाली करेगा , मेरे हिसाब से इसके लिए सबसे योग्य खिलाड़ी रोहित शर्मा है, जिन्होंने I.P.L.के अतिरिक्त अपनी प्रतिभा का कोई विशेष प्रदर्शन नहीं किया , कभी - तो लगता है कि , ये खिलाड़ी अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट खेल ही नहीं सकता ,तभी तो I.P.L. में आल-राउंडर दिखने वाला ये खिलाड़ी इंटरनेशनल में बल्लेबाजी ही भूल जाता है


इस वक्त तो रोहित ही द्रविड़ के लिए जगह खाली करते दिख रहे है, लेकिन आखिरी फ़ैसला तो धोनी ने ही करना है